ये कहानी है इतिहास के पन्नों में भुला दिये गये एक वीर की, एक सम्राट की जिसने अंतिम सांस भी हिन्दुत्व को दे दी पर जिसे न किताबों के पन्नों में जगह मिली न किस्से कहानियों में! ये कहानी है “हेमचंद्र विक्रमादित्य” की! "हेमू नृप भार्गव सरनामा, जिन जीते बाईस संग्रामा!” सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य या केवल हेमू (१५०१-१५५६) एक हिन्दू राजा था। यह भारतीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण समय था जब मुगल एवं अफगान वंश, दोनों ही दिल्ली में राज्य के लिये तत्पर थे।‘हेमू’ का जन्म सन् 1501 में राजस्थान के अलवर जिले के मछेरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रायपूर्ण दास था। पिताजी एक गरीब ब्राह्मण थे और पुरोहिताई का कार्य कर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।लेकिन इस्लामी आक्रांताओं के अत्याचार के कारण पिताजी हरियाणा के रेवाड़ी आ गये और यहां व्यापार करने लगे। इस तरह से कर्म के आधार पर वह एक वैश्य हो गए। हालांकि, कुछ लोग इन्हें ब्राह्मण मानने से इंकार करते हैं।अपने परिवार की आर्थिक सहायता के लिए हेमू ने दस्ताकर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. पर सन 1545 में शेर शा...
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