शिव-पार्वती विवाह
"हे दुर्गे, तुम्हें अपनी वामांगी बनाते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी। हे शिवे, मेरी हो जाओ और मेरी अर्धांगनी बन कैलाश आओ।"
"महादेव, आपसे विवाह करना ही मेरा इस रुप में अवतरण का ऊद्देश्य है। परंतु हे त्रिलोचन, कृपा कर मेरे पिता को विवाह प्रस्ताव भेजें।"
"भवानी, ऐसा ही होगा।"
"महादेव, आपसे विवाह करना ही मेरा इस रुप में अवतरण का ऊद्देश्य है। परंतु हे त्रिलोचन, कृपा कर मेरे पिता को विवाह प्रस्ताव भेजें।"
"भवानी, ऐसा ही होगा।"
वर्षों की तपस्या पूर्ण कर माँ पार्वती औशाढ़ीप्रष्थ लौट गई। गिरिराज हिमवंत, गिरिजाया मेनावती और गंगा यमुना ने उनका स्वागत किया।
उधर कैलाश पर महादेव ने सप्तर्षियों को बुला उन्हें कहा, "हे सप्तर्षियों, परब्रह्म होते हुए मेरा गिरिराज हिमवंत के यहाँ जा उनकी पुत्री का हाथ माँगना उचित नहीं। अतएव आप सब वहाँ मेरा और पार्वती का विवाह प्रस्ताव लेकर जाए।"
गिरिराज हिमवंत ने सप्तर्षियों का यथोचित सत्कार किया व आने का कारण पूछा।
स्वयंभू शिव की आज्ञानुसार सप्तर्षियों ने हिमवंत के समक्ष शिव-पार्वती विवाह का प्रस्ताव रखा।
स्वयंभू शिव की आज्ञानुसार सप्तर्षियों ने हिमवंत के समक्ष शिव-पार्वती विवाह का प्रस्ताव रखा।
"गिरिराज, देवाधीदेव महादेव आपकी पुत्री पार्वती देवी से विवाह करना चाहते हैं।"
"हे सप्तर्षियों, ये मेरा सौभाग्य है की महेश्वर ने मुझे इस योग्य समझा। इस विवाह को मेरी पूर्ण स्वीकृति है।"
"हे सप्तर्षियों, ये मेरा सौभाग्य है की महेश्वर ने मुझे इस योग्य समझा। इस विवाह को मेरी पूर्ण स्वीकृति है।"
प्रभु को मेरा समाचार दीजियेगा की जिस दिन भी वो शुभ समझे वो आ कर पार्वती का पाणिग्रहण कर सकते हैं।"
शिव ने ऋषी भृगु को विवाह के लिये उपयुक्त दिन का चयन करने को कहा।
"हे महेश, वैशाख की पंचमी का दिन ऊत्तमोत्तम है। बृहस्पतिवार होने के कारण ये दिवस ऊत्तम संतान की प्राप्ति के लिये भी उचित है। इसलिए हे प्रभु, ये दिन सर्वहितकारी है।"
"हे महेश, वैशाख की पंचमी का दिन ऊत्तमोत्तम है। बृहस्पतिवार होने के कारण ये दिवस ऊत्तम संतान की प्राप्ति के लिये भी उचित है। इसलिए हे प्रभु, ये दिन सर्वहितकारी है।"
"उचित है।", महेश की स्वीकृति!
गिरिराज के यहाँ तैयारियाँ शुरु हो गई और देवर्षि नारद शिव का सन्देश ले त्रिलोक भ्रमण पे निकल गये।
ब्रह्मलोक, वैकुण्ठ, स्वर्गलोक देवर्षि ने सभी स्थानों पे जा सभी को शिव-पार्वती के इस दिव्य विवाह के लिये सभी को आमंत्रित किया।
ब्रह्मलोक, वैकुण्ठ, स्वर्गलोक देवर्षि ने सभी स्थानों पे जा सभी को शिव-पार्वती के इस दिव्य विवाह के लिये सभी को आमंत्रित किया।
सभी देव, गन्धर्व, ऋषी, मुनि, अवधूत, कापालिक, और असुर भी शिव के ओर से विवाह में सम्मिलित हुए। वही सारे प्रजापति, पर्वत, पितृ, नाग, मातृकाएँ, योगिनियाँ, डाकिनीयाँ, मनुष्य आदि माँ पार्वती की ओर से।
विवाह के दिन पितामह ब्रह्मा और श्री हरि विष्णु ने कैलाश आकर शिव से कहा, "हे महेश्वर, आज आपका विवाह है। सो आज आपकी अनुमती से हम आप को ऐसे तैयार करना चाहते है जैसा सम्पूर्ण सृष्टि में किसी ने सोचा ना होगा।"
"ऐसा ही हो।", शिव मुस्कराए।
"ऐसा ही हो।", शिव मुस्कराए।
अपने वृषभ पे सवार शिव और पीछे उनके उत्साही गण।
उधर गिरिजाया मेना पार्वती देवी को तैयार होता देख आनंदित हुई जा रही थी।
"पार्वती मुझे विश्वास नहीं होता ये दिन वास्तविकता में आ गया है।"
और देवी के अधरों पे मुस्कान आ गई।
उधर गिरिजाया मेना पार्वती देवी को तैयार होता देख आनंदित हुई जा रही थी।
"पार्वती मुझे विश्वास नहीं होता ये दिन वास्तविकता में आ गया है।"
और देवी के अधरों पे मुस्कान आ गई।
"कहाँ है प्रभु शिव?", मेना की उत्सुकता ने प्रश्न किया।
"बारात आ रही है देवी।", देवर्षि ने उल्लासपूर्ण उत्तर दिया।
"बारात आ रही है देवी।", देवर्षि ने उल्लासपूर्ण उत्तर दिया।
देवी गंगा वर के स्वागत की सारी सामग्री लेकर आ गई।
उस बीच यम, कुबेर, वरुण, नैऋत्ती, अग्नी, वायू, इंद्र, अनंत, सुर्य, अश्विनी कुमार, आठों वसु, विश्वकर्मा, चंद्र, शनि, ११ रुद्र आदि कितने ही देव आदि ने प्रवेश किया पर सबकी नजरें महादेव के आगमन पर टिकी थी।
उस बीच यम, कुबेर, वरुण, नैऋत्ती, अग्नी, वायू, इंद्र, अनंत, सुर्य, अश्विनी कुमार, आठों वसु, विश्वकर्मा, चंद्र, शनि, ११ रुद्र आदि कितने ही देव आदि ने प्रवेश किया पर सबकी नजरें महादेव के आगमन पर टिकी थी।
तब ब्रह्मा, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, वासुदेव, जगन्नाथ आदि सब अपने रथों पर परिवार सहित आए।
पर जब मेना ने प्रभु शिव का आगमन देखा वो भयाक्रांत हो उठी। ढ़ोल, मृदंग, डमरू बजाते, लम्बे, छोटे, मोटे, भिन्न भिन्न अंगों वाले गणों, भूत-प्रेत, भैरव, आदि को नाचते गाते, चीखते चिल्लाते देख वो डर गई।

इस सब के बीच दिखे माहेश्वर शिव। शिव नहीं, ये तो महाकाल भैरव थे। हुँकार करते हुए कालों के भी काल, वृषभ पर आरूढ़ जब नन्दी उनके सर पे छत्र आच्छादित किये हुए है।

"प्रभु शिव आ गये।", देवर्षि ने कहा।
देवी पार्वती ने अपने आलय से झांकते हुए शिव की बारात देखी।
महाकाल रुपी माहेश्वर को अपनी ओर बढ़ता देख देवी मेना मूर्छित हो गई।
महाकाल रुपी माहेश्वर को अपनी ओर बढ़ता देख देवी मेना मूर्छित हो गई।
स्वयं महाकाल भैरव को अपनी ओर आते देख भयाक्रांत जब मैना देवी मूर्छित हो गई तो हिमवंत ने उन्हें थामा।
देवी मेना ने आँखें खोली।
"अच्छा है आपकी मूर्छा टूट गई देवी!"
देवी मेना ने आँखें खोली।
"अच्छा है आपकी मूर्छा टूट गई देवी!"
वापस वो दृश्य याद आते ही मेना ने तुरंत सवाल किया, "वो एक दु:स्वप्न था ना?"
"मेना तुम इस प्रकार व्यव्हार क्यों कर रही हो। महेश हमारे जामाता है। आओ द्वार पे उनका स्वागत करें।"
"क्या आपने उन्हें नहीं देखा स्वामी? यदि मुझे पता होता शिव इतने भयानक स्वरुप वाले हैं तो मैं गौरी के लिये उन्हें कदापि ना स्वीकार करती।"
"परंतु..."
"परंतु..."
"नहीं स्वामी। ये विवाह नहीं होगा। गौरी नदी में समाधि ले ले या मृत्यु को प्राप्त हो जाये परंतु वो भूतनाथ के वरण से ऊत्तम होगा।"
"माँ ..." महादेव के विरुद्ध कुछ ना सुनने को आतुर गौरी बोल उठी।
"चुप हो जाओ पार्वती। सब समाप्त कर तुम मुझसे प्रश्न कर रही हो?"
मेना ने देवी पार्वती पर क्रोधित होते हुए कहा। माता ने क्रोध में पुत्री पर हाथ उठाना तक गलत ना समझा।
"चुप हो जाओ पार्वती। सब समाप्त कर तुम मुझसे प्रश्न कर रही हो?"
मेना ने देवी पार्वती पर क्रोधित होते हुए कहा। माता ने क्रोध में पुत्री पर हाथ उठाना तक गलत ना समझा।
"परंतु माँ..."
"गंगा तुम कुछ ना कहो। वर्षों पुर्व तुमने उस भूतनाथ के लिये सर्वस्व त्याग दिया था और अब गौरी भी!"
"गंगा तुम कुछ ना कहो। वर्षों पुर्व तुमने उस भूतनाथ के लिये सर्वस्व त्याग दिया था और अब गौरी भी!"
"माँ आपको लगता है मैं और गौरी भिन्न है? हम दक्षायिनी सती के दो स्वरुप है माँ जो सदाशिव को समर्पित है सर्वदा के लिये।"
देवी मेना के सम्मुख उनकी दोनों पुत्रियों ने चतुर्भूज रुप लिया। देवी गंगा ने रक्त, जल, अमृत और मदिरा लिये मगर पर आरूढ़ और देवी गौरी दुर्गा स्वरुप में शंख, चक्र, धनुष-बाण लिये सिन्ह पर आरूढ़।
तदोपरांत वो दोनों ने मिल कर सती स्वरुप में चतुर्भूज रुप धारण कर लिया।
"माते जब आपको मैंने स्वरुप दिखा दिया तो मुझे महेश का वरण करने की अनुमती दें। मेरे इस जन्म की यही नियती है। सती के स्वरुप में शिव निंदा सुनने पर मैं उनके वरण के लिये शुद्ध नहीं रह गई। मुझे वो स्वरुप त्यागना पड़ा।"
"माते जब आपको मैंने स्वरुप दिखा दिया तो मुझे महेश का वरण करने की अनुमती दें। मेरे इस जन्म की यही नियती है। सती के स्वरुप में शिव निंदा सुनने पर मैं उनके वरण के लिये शुद्ध नहीं रह गई। मुझे वो स्वरुप त्यागना पड़ा।"
"नहीं।", रोते हुए देवी मेना महाकाली के चरणों में गिर पड़ी।
"माते, मैं आपकी चिंता का कारण समझती हूँ। परंतु इस समग्र संसार में ऐसा कोई वर नहीं जो महादेव के नख भर भी हो।"
देवी मेना ने स्वीकृती दी और और बाहर देखने को आई।
देवी मेना ने स्वीकृती दी और और बाहर देखने को आई।
महाकाल भैरव स्वरुप को त्याग महेश अब सौम्य गौरांग स्वरुप को धारण किये थे। सुन्दर वस्त्र, मंडित केश, रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित चन्द्रमौलिश्वर के उस अद्भुत स्वरुप को दे मेना का हर संशय समाप्त हो गया।
"हे भोलेनाथ मुझे क्षमा करें।", मेना ने कहा।
"माँ आपकी चिंता का कारण मैं जानता हूँ। अतएव उस विषय में कोई संशय ना रखें। हम सब गौरी से प्रेम करते हैं और उसके लिये शुभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते।"
"माँ आपकी चिंता का कारण मैं जानता हूँ। अतएव उस विषय में कोई संशय ना रखें। हम सब गौरी से प्रेम करते हैं और उसके लिये शुभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते।"
महादेव को विवाह मंडप की ओर ले जाया गया। तदोपरांत देवी उमा संसार के सर्वोत्कृष्ट आभूषणों से सुशोभित सहस्त्रों सूर्यों सी आभा लिये महादेव के वाम भाग में आ विराजमान हुई।
हर-गौरी का नेत्र मिलन संसार के लिये सर्वोत्कृष्ट क्षण था।
कोटि कोटि नई सृष्टियों का उद्गम!
कोटि कोटि नई सृष्टियों का उद्गम!
उमा-महेश का विवाह अलौकिक था, अप्रतिम था, अद्भुत था। ये कुछ ऐसा था जो हर क्षण हर पल घटित होने वाला था।
सप्तपदी के वचनों में बन्ध रहे निर्बाध महेश गौरी के अर्धांग हुए।
सप्तपदी के वचनों में बन्ध रहे निर्बाध महेश गौरी के अर्धांग हुए।
मनमोहक सुगंध वाले पुष्पों की मालाओं से दोनों ने एक दुसरे का वरण किया।
हिमवंत ने गिरिजा पार्वती का कन्यादान किया।
देवी मेना और गिरिराज ने सम्मुख आ उमा का हाथ उमापती के हाथ में रखा।
हिमवंत ने गिरिजा पार्वती का कन्यादान किया।
देवी मेना और गिरिराज ने सम्मुख आ उमा का हाथ उमापती के हाथ में रखा।
सिंदूरदान व मंगलसूत्र पारायण की पवित्र विधियाँ सर्वमंगल को सिद्ध हुई।
हर-गौरी विवाह सम्पूर्ण हुआ!
सृष्टि अनेकों वर्षों के प्यास से तृप्त हुई। सुर-असुर, देव-दानव, गन्धर्व, गण, प्रेत आदि सब जहाँ तक दृष्टी जाती सब लोक नृत्य कर रहे थे।
सृष्टि अनेकों वर्षों के प्यास से तृप्त हुई। सुर-असुर, देव-दानव, गन्धर्व, गण, प्रेत आदि सब जहाँ तक दृष्टी जाती सब लोक नृत्य कर रहे थे।
भव्य बारात गौरी को ले कैलाश लौट गई!
हर-गौरा विवाह समाप्त।
हर-गौरा विवाह समाप्त।
।।जगदम्ब।।
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