अर्धनारीश्वर
“अर्धनारीश्वर”
सृष्टि निर्माण हेतु शिव और शक्ति पृथक होते है। सृष्टि को बनाने के लिये पुरुष और स्त्री दोनों की आवश्यकता है।

पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं।जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएँ अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा।
इस मैथुनी सृष्टि के निर्माण में असफल ब्रह्मा ने महादेव का कठोर तप किया तो समस्या समाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए।अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की।
शिव और शिवा का ये स्वरूप अत्यंत मनोहारी था।
पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दे अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान हो गए।शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।
ब्रह्मा को दिये वरदान के कारण ही शिव से अलग हुई उमा ने सृष्टि को उतपन्न किया!
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥
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