Posts

Showing posts from October, 2020

नवरात्र में माँ दुर्गा के आगमन व गमन वाहन

What is the significance of आगमन and गमन वाहन of माँ दुर्गा? And how is it known? शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता।। अर्थात्- सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार या मंगलवार को देवी का वाहन घोड़ा होता है। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं। बुधवार से नवरात्रि शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं। देवी के आगमन के वाहन से शुभ-अशुभ का विचार किया जाता है। माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार आगामी छह माह में होने वाली घटनाओं का आंकलन किया जाता है। इसके लिए भी देवी भागवत पुराण में एक श्लोक है- गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे। नौकायां सर्वसिद्धिस्या दोलायां मरणंधुवम्।। अर्थात्- देवी जब हाथी पर सवार होकर आती है तो वर्षा ज्यादा होती है। घोड़े पर आती हैं तो पड़ोसी देशों से युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका पर आती हैं तो सभी के लिए सर्वसिद्धिदायक होता है और डोली पर आती हैं तो किसी महामारी से मृत्यु का भय बना रहता हैं। माता दु...

मंदिर व उनके स्थापत्य

Image
“मंदिर व उनके स्थापत्य” मंदिर निर्माण की कला सदियों पुरानी है। वैदिक काल से ही मंदिरों के वर्णन मिलते हैं। देवालय, कोविल, देओल, देवस्थानम्, प्रसाद आदि अनेक नामों से विदित मंदिर अनेक तरह से निर्मित किये जाते हैं। मंदिर निर्माण के पुर्ववर्ती 3 प्रकार थे: १.संधर (प्रदक्षिणा पथ) २.निरंधार (प्रदक्षिणा पथ के बिना) ३.सर्वतोभद्र (सभी दिशाओं से प्रवेश किया जा सके) इस काल के कुछ प्रमुख मन्दिरों में है देवघर (यूपी) का मंदिर, उदयगिरी(एमपी) आदि!सनातन मंदिर के मुख्य स्वरुप: गर्भगृह(देवता का निवास) मण्डप(प्रवेश कक्ष जोकि काफी बड़ा होता है) पूर्वोतर काल में इन पर शिखर बनाये जाने लगे जिन्हेशिखर उत्तर भारत में व विमान दक्षिण भारत में कहा जाता है। वाहन अर्थात मंदिर के अधिष्ठाता देवता की सवारी। ये स्तम्भ या ध्वजा के साथ गर्भगृह के साथ कुछ दूरी पर रखा जाने लगा। भारत के मंदिरों को मुख्यत: दो शैलियों में बाँटा जाता है: उत्तर की नागर व दक्षिण की द्रविड़। वेसर शैली इन दोनों शैलियों का मिश्रण है जिसमें नागर और द्रविड़ की चुनी हुई विशेषताएँ होती हैं। नागर शैली के मंदिरों में मुख्य द्वार पर गंगा यमुना जैसी नदियों...

कल्कि

Image
कल्कि चतुर्यग समाप्त होने के साथ ये प्रभु विष्णु का दसवाँ व अंतिम मुख्य अवतार होगा। राजा रवि वर्मा का बनाया चित्र! चक्र रुप में चलने वाले काल के अंतिम युग के समाप्त होने की परिस्थिती में कल्कि का अवतरण होगा। जब भगवान कल्कि देवदत्त नाम के घोड़े पर आरुढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे पुन: सतयुग की स्थापना होगी। भगवान का यह अवतार ” निष्कलंक भगवान ” के नाम से भी जाना जायेगा और भगवान श्री कल्कि ६४ कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार होंगे। श्रीमदभागवत व भविष्यपुराण में भी इसका वर्णन मिलता है।इस विषय में अधिक वर्णन कल्कि पुराण में मिलता है जो 18 मुख्य पुराणोंं का भाग नहीं है। श्रीमद्भागवत-महापुराण के 12वे स्कंद के अनुसार- सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।। अर्थ- शम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे। कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव...

अर्धनारीश्वर

Image
“अर्धनारीश्वर” सृष्टि निर्माण हेतु शिव और शक्ति पृथक होते है। सृष्टि को बनाने के लिये पुरुष और स्त्री दोनों की आवश्यकता है। पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं।जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएँ अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। इस मैथुनी सृष्टि के निर्माण में असफल ब्रह्मा ने महादेव का कठोर तप किया तो समस्या समाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए।अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। शिव और शिवा का ये स्वरूप अत्यंत मनोहारी था। पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दे अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान हो गए।शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं। ब्रह्मा को दिये वरदान के कारण ही शिव से अलग हुई ...

Sri Rāma and Hanumān

Image
So here is a beautiful story about the wit of Hanuman. Once he was throwing stone in the river which kept on floating. Sri Ram saw him from a distance and came there. He also tried to throw stones in the river but they would sink. Then Ram asked Hanuman why this was happening that his stone keot floating. Hanuman replied, “Prabhu, I throw the stones on your name and the whoever takes your name crosees भवसागर what is this river?Meanwhile you are परब्रह्म yourself. When you throw something hiw can it stop until and unless it reaches the very bottom?”

श्रीरामरक्षास्त्रोतम्

संग सखीं सब सुभग सयानीं। गावहिं गीत मनोहर बानीं॥ सर समीप गिरिजा गृह सोहा। बरनि न जाइ देखि मनु मोहा॥ (227।2) साथ में सब सुंदरी और सयानी सखियाँ हैं, जो मनोहर वाणी से गीत गा रही हैं। सरोवर के पास गिरिजाजी का मंदिर सुशोभित है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, देखकर मन मोहित हो जाता हैएक सखी सिय संगु बिहाई। गई रही देखन फुलवाई॥ तेहिं दोउ बंधु बिलोके जाई। प्रेम बिबस सीता पहिं आई॥4 एक सखी सीताजी का साथ छोड़कर फुलवाड़ी देखने चली गई थी। उसने जाकर दोनों भाइयों को देखा और प्रेम में विह्वल होकर वह सीताजी के पास आई।देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥ स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥1 दो राजकुमार बाग देखने आए हैं। किशोर हैं और सब प्रकार से सुंदर हैं। वे साँवले और गोरे हैं, उनके सौंदर्य को मैं कैसे बखानकर कहूँ। वाणी बिना नेत्र की है और नेत्रों के वाणी नहीं हैतासु बचन अति सियहि सोहाने। दरस लागि लोचन अकुलाने॥ चली अग्र करि प्रिय सखि सोई। प्रीति पुरातन लखइ न कोई॥4 उसके वचन सीताजी को अत्यन्त ही प्रिय लगे और दर्शन के लिए उनके नेत्र अकुला उठे। उसी प्यारी सखी को आगे करके सीताजी च...

इष्ट (Whom to worship?)

Image
Who is your इष्ट? There is a reason we chose our इष्ट. There is a special kind of tuning with the इष्ट according to your nature and behavior. In Sanatan chose our इष्ट very specifically. He/she whenever chosen for worship is chosen mostly in सौम्य form, the reason being easy to please and love rather than fearing. Let’s for example take अंजनेय as इष्ट. There are two स्वरूप famous of Hanuman दास भाव and वीर भाव. Hanuman is mostly worshipped in his दास भाव as then we say praises of श्री राम and Hanuman gets easily pleased as राम नाम is everything for him. In any ways you are praying Hanuman and the moment he is to appear you remember his वीर भाव and he appears in such I guarantee you, however big साधक you be you will get frightened.Just by the mere sight of वीर हनुमान you will be frightened enough to death if you are not अधिकारी of that. That is why it is important to chose the form to worship specially. Let’s imagine you worship जगतमाता in her सौम्य स्वरूप as गौरी! She is the most beaut...

श्री सिया-राम का प्रथम मिलन

संग सखीं सब सुभग सयानीं। गावहिं गीत मनोहर बानीं॥ सर समीप गिरिजा गृह सोहा। बरनि न जाइ देखि मनु मोहा॥ (227।2) साथ में सब सुंदरी और सयानी सखियाँ हैं, जो मनोहर वाणी से गीत गा रही हैं। सरोवर के पास गिरिजाजी का मंदिर सुशोभित है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, देखकर मन मोहित हो जाता हैएक सखी सिय संगु बिहाई। गई रही देखन फुलवाई॥ तेहिं दोउ बंधु बिलोके जाई। प्रेम बिबस सीता पहिं आई॥4 एक सखी सीताजी का साथ छोड़कर फुलवाड़ी देखने चली गई थी। उसने जाकर दोनों भाइयों को देखा और प्रेम में विह्वल होकर वह सीताजी के पास आई।देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥ स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥1 दो राजकुमार बाग देखने आए हैं। किशोर हैं और सब प्रकार से सुंदर हैं। वे साँवले और गोरे हैं, उनके सौंदर्य को मैं कैसे बखानकर कहूँ। वाणी बिना नेत्र की है और नेत्रों के वाणी नहीं हैतासु बचन अति सियहि सोहाने। दरस लागि लोचन अकुलाने॥ चली अग्र करि प्रिय सखि सोई। प्रीति पुरातन लखइ न कोई॥4 उसके वचन सीताजी को अत्यन्त ही प्रिय लगे और दर्शन के लिए उनके नेत्र अकुला उठे। उसी प्यारी सखी को आगे करके सीताजी च...

शिव-पार्वती विवाह

Image
"हे दुर्गे, तुम्हें अपनी वामांगी बनाते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी। हे शिवे, मेरी हो जाओ और मेरी अर्धांगनी बन कैलाश आओ।" "महादेव, आपसे विवाह करना ही मेरा इस रुप में अवतरण का ऊद्देश्य है। परंतु हे त्रिलोचन, कृपा कर मेरे पिता को विवाह प्रस्ताव भेजें।" "भवानी, ऐसा ही होगा।" वर्षों की तपस्या पूर्ण कर माँ पार्वती औशाढ़ीप्रष्थ लौट गई। गिरिराज हिमवंत, गिरिजाया मेनावती और गंगा यमुना ने उनका स्वागत किया। उधर कैलाश पर महादेव ने सप्तर्षियों को बुला उन्हें कहा, "हे सप्तर्षियों, परब्रह्म होते हुए मेरा गिरिराज हिमवंत के यहाँ जा उनकी पुत्री का हाथ माँगना उचित नहीं। अतएव आप सब वहाँ मेरा और पार्वती का विवाह प्रस्ताव लेकर जाए।" गिरिराज हिमवंत ने सप्तर्षियों का यथोचित सत्कार किया व आने का कारण पूछा। स्वयंभू शिव की आज्ञानुसार सप्तर्षियों ने हिमवंत के समक्ष शिव-पार्वती विवाह का प्रस्ताव रखा। "गिरिराज, देवाधीदेव महादेव आपकी पुत्री पार्वती देवी से विवाह करना चाहते हैं।" "हे सप्तर्षियों, ये मेरा सौभाग्य है की महेश्वर ने मुझे इस योग्य समझा। इस विवाह को ...

Kali Sàntaran Upànishad

Image
thread#showTweet" data-screenname="viigyaan" data-tweet="1314904613523320840" dir="auto" style="box-sizing: border-box; font-family: lato, sans-serif; font-size: 1.5rem; line-height: 1.5; letter-spacing: -0.003em; margin-bottom: 20px; overflow-wrap: break-word; color: rgb(0, 0, 0); cursor: pointer; transition: all 0.3s ease 0s; padding-top: 20px;">The smallest Upànishad Kali Sàntaran Upànishad from the Krişna Yàjur Véda expounds about glorious mantrà: हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ thread#showTweet" data-screenname="viigyaan" data-tweet="1314904622062993409" dir="auto" style="box-sizing: border-box; font-family: Georgia, Cambria, "times new roman", Times, serif; font-size: 18px; line-height: 1.58; letter-spacing: -0.003em; margin-bottom: 1.25rem; overflow-wrap: break-word; color: rgb(0, 0, 0); cursor: pointer; transition: all 0.3s ease 0s;"...